13 Feb 2011

घुइसरनाथ धाम संगीत(विडियो)

    उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में,
लालगंज के उत्तर घुश्मेश सई तीर हैं|
द्वादश लिंगों में गणना होती शिव भोले की ,
सई नदी के पास एक वृक्ष भी करील है |
मेला हर मंगल को लगता है भारी यंहा ,
शिवरात्रि एवं सावन दीन होती बड़ी भीर है |
द्वादश लिंगों में पूजित बाबा के आशीर्वाद लेने,
पहुँचते बाबा दरबार में गरीब औ अमीर हैं |

  घुइसरनाथ धाम संगीत(विडियो)  

इतिहास : बाबा घुइसरनाथ धाम

                             ▬▬▬۩बाबा घुइसरनाथ धाम नाम कैसे पड़ा۩▬▬ 

 प्राचीन काल में सई नदी के किनारे इलापुर(अब कुम्भापुर) नामक गाँव में श्री घुइसर यादव जी थे |वह एक चरवाहे थे और रोज जंगल में जानवर चराने जाते थे, वो बहुत ही नास्तिक थे उनकी ईश्वर में आस्था नहीं थी| वह जंगल में टीले(भीटा) पर ही रोज बैठकर आस पास की गाय-भैंस चराया करते थे क्योंकि भीटा बहुत दूर में था अत: सुबह से शाम तक जानवरों को चराते चराते वो अपना समय काटने के लिये घर से मूंज ले जाया करते थे जिससे वो रस्सियाँ बनाते थे | उसे खूंदने के लिए उन्हें पत्थर ढूढना था अतःउन्होंने वह पत्थर चुना जिसमे वो एक बार अटक कर गिर गए थे क्यों की वह बहुत बड़े वृक्ष के नीचे छावं में भी था और सभी पत्थरों से ज्यादा चमकीला और चिकना था,अब प्रतिदिन घुइसर जी मूंज खूंदते और रस्सी बनाया करते थे| दिव्य पत्थर पर रोज अपनी लाठी से चोट करते और शाम को पत्थर के आस पास साफ़ कर देते और पत्थर को भी अपने अगोंछे से साफ़ कर देते थे क्योंकि अगले दिन उन्हें फिर वहीं बैठना होता था |लेकिन जैसे जैसे वह पत्थर चोट मार रहे थे , उसी तरह वो पत्थर बाहर उपर की तरफ निकल रहा था | आज भी उस दिव्या पत्थर रुपी १२वे ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर जी में चोट के निशान मौजूद हैं यह कार्य करते करते कई वर्ष बीत गए , एक दिन शाम के समय बहुत बारिश हुई और वह पत्थर को व आस पास की जगह साफ़ कर रहे थे तभी बहुत भयानक आवाज के साथ दिव्या रोशनी हुई और भगवान शंकर उसी पत्थर से प्रकट होकर बोले घुइसर यादव तुमने मेरा सिर इतने दिन दबा के और मेरी सेवा करके मुझे खुश् कर दिया बोलो क्या वरदान चाहते हो मैं तुम्हे मनचाहा वरदान दूंगा | यदुवंशी घुइसर जी नास्तिक थे भगवान को साक्षात् अपने सामने देख वो शिवभक्ति से ओत प्रोत गये उनकी नास्तिकता जाती रही |भगवान शिव जी ने उस शिवलिंग के बारे में उन्हें सारी कहानी बताई की कैसे घुश्मा की भक्ति से वह आये थे और आज फिर दोबारा तुम्हारी निष्काम सेवा से प्रसन्न होकर पुन: जनकल्याण के लिए अवतरित हुए हैं क्योंकि मुझे त्रेता युग में अपने भगवान के दर्शन के लिए यंहा फिर से उद्भव लेना ही था |भगवान राम जी ने वन जाते वक्त भगवान घुश्मेश्वर जी से मुलाकात की थी और यंहा विश्राम भी किया था |जंहा उन्होंने बैठ कर विश्राम किया था उनके पसीने की बूँद वंहा गिरी जिससे वंहा करीर का वृक्ष उत्पन्न हुआ जो आज भी विराजमान है |अत: इस तरह शिव जी ने यदुवंशी घुइसर जी को दर्शन दिया और उनकी नास्तिकता का नाश किया घुइसर जी ने तीन वर मांगे :-

१- मेरे वंशज ही आपकी प्रथम पूजा करें |
२- सात गुना अन्न-जल आपकी सेवा से मुझे और मेरे वंश को हमेशा मिले |
३- मेरे नाम से आपका यह पावन धाम प्रसिद्द हो |




आज भी उनके वंशज श्री शिव मूर्ती गिरी जी हैं और बाबा धाम की सेवा में निरंतर लगे हुए हैं |बिना उनके या उनके पुत्रों के प्रथम पूजन के बगैर कोई बाबा धाम में भगवान घुश्मेश्वर जी की पूजा नहीं कर सकता है और आज भी घुइसर यादव जी के वंशज खुश और सुखी हैं | घुइसर यादव जी के नाम से ही भगवान घुश्मेश्वर जी के धाम का नाम बाबा घुइसरनाथ धाम पड़ा |(यह उपरोक्त इतिहास, कुम्भापुर (घुइसरनाथ धाम) आस पास निवास करने वाले लोगों से प्राप्त की गयी है)

11 Feb 2011

इतिहास - बाबा बूढ़े नाथ जी : देऊम पूरब (सांगीपुर)

                                                          ● बूढ़ेनाथ धाम मंदिर
उपलिंग रहत मुख्य लिंग साथा | भक्त वृन्द गांवइ शिव गाथा ||
बूढ़ेश्वर हैं देऊम् पासा | पूजेहु सेवत सेवक दासा ||

 बाबा घुइसरनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग का दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है.बाबा घुइसरनाथ धाम के नजदीक ही देऊम में बूढ़ेनाथ धाम मंदिर में स्थित बूढ़ेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यहां के शिवलिंग की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की, बल्कि उनका उद्भव स्वयं हुआ है और १२वें ज्योतिर्लिंग भगवान घुश्मेश्वर जी के उपलिंग के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं |भगवान घुश्मेश्वर घुइसरनाथ धाम  और बाबा बूढ़ेश्वर नाथ देऊम स्थान के बीच की लगभग ३ किमी. है। घुइसरनाथ के बाद अब वहां भी पर्यटन स्थल के अधिकारियों व कर्मचारियों ने इतिहास खंगालने की कवायद शुरू कर दी है। लालगंज तहसील मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर देउम चौराहे के पास प्राचीन बाबा बूढ़ेश्वर नाथ का मंदिर है। | कई वर्ष पहले दोनों भगवानो में कुछ स्वाभिमान को लेकर लड़ाई हो गयी | घुश्मेश्वर भगवान इलापुर (अब कुम्भापुर) घुइसरनाथ धाम में प्रकट हुए थे और भगवान बूढ़ेश्वर जी देऊम धाम में स्वयं ही जन कल्याण के लिए प्रकट हुए थे | दोनों क़ी लड़ाई काफी दिनों तक चलती रही, एक दिन ऐसा आया जब घुइसरनाथ भगवान ने बूढ़े धाम के ऊपर वार किया और उनके शरीर का कुछ हिस्सा गायब हो गया और तब जाकर भगवान बूढ़ेश्वर माने की भगवान घुश्मेश्वर जी ही बड़े हैं |आज भी बूढ़े धाम के मंदिर के शिवलिंग का उपरी हिस्सा टुटा हुआ है | 
बाबा बूढ़ेश्वर नाथ जी बहुत ही चमत्कारी हैं |उनका चमत्कार हम आपको बताते हैं |भारतीयों की धर्म के प्रति आस्था को देखकर यूं तो कई जगह अंग्रेजों ने इसकी थाह लेनी चाही पर वे कामयाब नहीं हुए, ऐसे ही देउम के बूढ़ेश्वर नाथधाम की थाह भी अंग्रेज नहीं ले पाए। चौबीस फीट की खोदाई के बाद जब बिच्छू, बर्र और अन्य विषैले जंतु निकलने लगे तो अंग्रेज अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए,बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले अंग्रेजों ने यहां के लोगों की आस्था देखकर बाबा बूढ़े नाथ के शिवलिंग को यह देखना चाहा कि इसे किसी ने स्थापित किया है या वे स्वयं उद्भूत हुए हैं। अंग्रेजों के आदेश पर मजदूरों ने खोदाई शुरु की और कई दिन तक खोदने के बाद लगभग चौबीस फीट तक की गहराई तक पहुंच गए। जब वे लोग आगे बढ़ने लगे तो उसमें से विषैले बिच्छू, बर्र, हांड़ा आदि निकल कर मजदूरों पर टूट पड़े। इससे मजदूरअपनी जान बचाते हुए भाग निकले। इसके पहले भी हजारो भक्तों प्रभु को सच्चे दिल से प्रार्थना, अरज कर मनवांछित फल प्राप्त करते थे और आज भी सर्व भक्तो की मनोकामना प्रभु पूर्ण करते हैं । संवत 2001 में आसपास गिरि परिवार ने बूढ़ेश्वर शिवलिंग के पास एक मंदिर का निर्माण जनसहयोग से प्रारंभ कर दिया। आज वहां एक मुख्य भव्य मंदिर और चार छोटे मंदिर स्थित हैं। यहां मलमास के पूरे माह और महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर तक के श्रद्धालु आते हैं और गंगाजल, बिल्व पत्र आदि से पूजन अर्चन करते हैं।

3 Feb 2011

बाबा श्री घुश्मेश्वर:ई-दर्शन

 बाबा श्री घुश्मेश्वर:ई-दर्शन 
सूचना : ई-दर्शन सुविधा मात्र उच्च तीव्रता वाले दर्शको के लिए उपलब्ध है| ब्रॉडबैंड दर्शक बिना अवरोध के बाबा घुश्मेश्वर के दर्शन कर सकते है, डायल-उप दर्शक दर्शन में अवरोध का सामना कर सकते है |