● बूढ़ेनाथ धाम मंदिर ●
उपलिंग रहत मुख्य लिंग साथा | भक्त वृन्द गांवइ शिव गाथा ||
बूढ़ेश्वर हैं देऊम् पासा | पूजेहु सेवत सेवक दासा ||
बूढ़ेश्वर हैं देऊम् पासा | पूजेहु सेवत सेवक दासा ||

 बाबा
 घुइसरनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक 
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग का दर्शन लोक-परलोक 
दोनों के लिए अमोघ फलदाई है.बाबा घुइसरनाथ धाम के नजदीक ही देऊम में 
बूढ़ेनाथ धाम मंदिर में स्थित बूढ़ेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि
 यहां के शिवलिंग की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की, बल्कि उनका 
उद्भव स्वयं हुआ है और १२वें ज्योतिर्लिंग भगवान घुश्मेश्वर जी के उपलिंग 
के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं |भगवान घुश्मेश्वर घुइसरनाथ धाम  और बाबा 
बूढ़ेश्वर नाथ देऊम स्थान के बीच की लगभग ३ किमी. है। घुइसरनाथ के बाद अब 
वहां भी पर्यटन स्थल के अधिकारियों व कर्मचारियों ने इतिहास खंगालने की 
कवायद शुरू कर दी है। लालगंज तहसील मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर देउम 
चौराहे के पास प्राचीन बाबा बूढ़ेश्वर नाथ का मंदिर है। | कई वर्ष पहले 
दोनों भगवानो में कुछ स्वाभिमान को लेकर लड़ाई हो गयी | घुश्मेश्वर भगवान 
इलापुर (अब कुम्भापुर) घुइसरनाथ धाम में प्रकट हुए थे और भगवान बूढ़ेश्वर 
जी देऊम धाम में स्वयं ही जन कल्याण के लिए प्रकट हुए थे | दोनों क़ी लड़ाई
 काफी दिनों तक चलती रही, एक दिन ऐसा आया जब घुइसरनाथ भगवान ने बूढ़े धाम 
के ऊपर वार किया और उनके शरीर का कुछ हिस्सा गायब हो गया और तब जाकर भगवान 
बूढ़ेश्वर माने की भगवान घुश्मेश्वर जी ही बड़े हैं |आज भी बूढ़े धाम के 
मंदिर के शिवलिंग का उपरी हिस्सा टुटा हुआ है | 
बाबा
 बूढ़ेश्वर नाथ जी बहुत ही चमत्कारी हैं |उनका चमत्कार हम आपको बताते हैं 
|भारतीयों की धर्म के प्रति आस्था को देखकर यूं तो कई जगह अंग्रेजों ने 
इसकी थाह लेनी चाही पर वे कामयाब नहीं हुए, ऐसे ही देउम के बूढ़ेश्वर 
नाथधाम की थाह भी अंग्रेज नहीं ले पाए। चौबीस फीट की खोदाई के बाद जब 
बिच्छू, बर्र और अन्य विषैले जंतु निकलने लगे तो अंग्रेज अपनी जान बचाकर 
भाग खड़े हुए,बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले अंग्रेजों ने यहां के लोगों की
 आस्था देखकर बाबा बूढ़े नाथ के शिवलिंग को यह देखना चाहा कि इसे किसी ने 
स्थापित किया है या वे स्वयं उद्भूत हुए हैं। अंग्रेजों के आदेश पर मजदूरों
 ने खोदाई शुरु की और कई दिन तक खोदने के बाद लगभग चौबीस फीट तक की गहराई 
तक पहुंच गए। जब वे लोग आगे बढ़ने लगे तो उसमें से विषैले बिच्छू, बर्र, 
हांड़ा आदि निकल कर मजदूरों पर टूट पड़े। इससे मजदूरअपनी जान बचाते हुए भाग
 निकले। इसके पहले भी हजारो भक्तों प्रभु को सच्चे दिल से प्रार्थना, अरज 
कर मनवांछित फल प्राप्त करते थे और आज भी सर्व भक्तो की मनोकामना प्रभु 
पूर्ण करते हैं । संवत 2001 में आसपास गिरि परिवार ने बूढ़ेश्वर शिवलिंग के
 पास एक मंदिर का निर्माण जनसहयोग से प्रारंभ कर दिया। आज वहां एक मुख्य 
भव्य मंदिर और चार छोटे मंदिर स्थित हैं। यहां मलमास के पूरे माह और 
महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर तक के श्रद्धालु आते हैं और गंगाजल, बिल्व 
पत्र आदि से पूजन अर्चन करते हैं।
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