22 Aug 2011

||आप सभी भक्तों का स्वागत है || - प्रसार सेवा

                 बाबा घुइसरनाथ धाम की जय : जय माता दी: हर हर महादेव : बाबा कृपा करो
 
देवाधिदेव श्री घुश्मेश्वर नाथ महादेव का चरित्र ही सफलता का महा अनंत उदाहरण है। यह एक ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना देव, दानव, नर, गंधर्व सभी करते हैं। बाबा अपने भक्तों की हर पुकार को सुनते हैं और उसकी श्रद्धा के अनुसार शीघ्र फल भी देते हैं।
     बाबा घुइसरनाथ धाम में श्री घुश्मेश्वर जी का दर्शन -पूजन करते समय एक आत्मीय सुख की अनुभूति होती है |यह बहुत बड़ी आस्था है जो भक्त की मनोकामना तुरंत ही बाबा की सेवा उपरान्त ही पूरी हो जाती है |

                                                    www.ghuisarnathdham.org






" भक्तों का कल्याण करने वाले बाबा घुइसरनाथ जी का मंदिर सई तट पर भक्तों को बरबस अपनी और खींचता रहा है | बाबा घुइसरनाथ धाम की पावन सीड़ियों पर हम सभी ने बचपन से मत्था टेका है |

          प्रसार मंच के माध्यम से बाबा की सेवा मन से करने का सुअवसर इस पावन महाशिवरात्रि पर हमे भी मिल रहा है "
 
बाबा घुइसरनाथ जी की सेवा के लिए खुला आमंत्रण -प्रसार समिति के माध्यम से आप बाबा घुइसरनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर्व पर मात्र एक दिन की सेवा कर वर्ष भर का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं |

प्रसार समिति बाबा की सेवा के लिया प्रतिबद्ध है आपसे सुझाव और सहयोग की अपेक्षा है |

महा शिवरात्रि में बाबा की सेवा के लिए नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करे|
http://ghuisarnathdham.com/hin/index.php?option=com_content&view=article&id=133&Itemid=105



 


बाबा घुइसरनाथ धाम की प्रसार सेवा का शुभारम्भ २ मार्च २०११

बाबा घुइसरनाथ धाम का पौराणिक,धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक प्रसार इन्टरनेट के माध्यम से अच्छी तरह से किया जा सकता है | अत: घुइसरनाथ धाम प्रसार समिति ने पहले बाबा घुइसरनाथ धाम की प्रसार सेवा में वेबसाइट समर्पित की जिसका उद्घाटन प्रमोद जी ने एकता महोत्सव २०११ में किया | मंदिर प्रशासन के तत्कालीनमुख्य महंथ श्री शिव मूर्ति गिरी जी ने बाद में इसे बाबा घुइसरनाथ धाम की वेबसाइट के रूप में लिखित स्वीकृति प्रदान कर समिति को मंदिर प्रशासन की तरफ से स्वीकृत किया | बाबा घुइसरनाथ धाम प्रसार समिति से लगा तार लोग जुड कर अपने सुझाव और अपनी आकांक्षाओं से हमें अवगत करा रहे हैं |

   घुइसरनाथ धाम प्रसार समिति का मुख्य लक्ष्य बाबा घुइसरनाथ धाम को उसकी पौराणिक और दिव्य अध्यात्मिक पहचान भारत में ही नहीं अपितु विश्व में दिलवाना है |

8 Aug 2011

कैसे पहुचें बाबा नगरी ,प्रतापगढ़ (उ.प्र.)


●●●●●●▬▬▬▬▬▬۩कैसे पहुचें۩▬▬▬▬▬●●●●●●●●●●

श्रीमन महामहीम भारतवर्षे मध्ये, बेल्हा प्रतापगढ़ पश्चिमोत्तर भागे |
सत्यास्तटे विकटे निकटे वनस्थली, घुश्मेश्वरम् स्वयमेव प्रकटेव शम्भो||
आप घुइसरनाथ धाम विभिन्न मार्गो से पहुँच सकते हैं, हम आपको बाबा घुइसरनाथ पहुंचने का मार्गदर्शन बस, रेल और हवाई यात्रा तीनो सुविधाओ से कर रहे हैं – 


घुइसरनाथ धाम देश कर हर कोने से आराम से यहाँ आया जा सकता है | बस, रेल और हवाई यात्राओ के जरिये देश विदेश के किसी कोने से यहाँ सुगमता से पहुचा जा सकता है |

बस सुविधा :
बाबा धाम राजमार्ग 36 से जुड़ा है जिससे कि बस की सुविधा बहुत ही सुगम और आसान है | विभिन्न बड़े शहरों से घुइसरनाथ की दूरी - आगरा 494 किमी, इलाहाबाद 88 किमी, भोपाल 588 किमी, कानपूर 253 किमी, लखनऊ 145 किमी है |

रेल सुविधा :
अमेठी और प्रतापगढ़ घुइसरनाथ के करीबी रेलवे स्टेशन है , धाम पहुँचाने के लिए आप कुंडा रेलवे स्टेशन पर भी उतर सकते हैं | धाम से दोनो रेलवे स्टेशनों की दूरी मात्र 32 किमी है |कुंडा स्टेशन से भी आसानी से पंहुचा जा सकता है |
काशी विश्वनाथ, पद्मावत एक्सप्रेस,हावड़ा अमृतसर मेल, गरीब रथ, भोपाल एक्सप्रेस, नीलांचल एक्सप्रेस, सरयू एक्सप्रेस, ऊंचाहार एक्सप्रेस,नौचंदी एक्सप्रेस, साकेत एक्सप्रेस, उद्योग नगरी एक्सप्रेस ट्रेन आदि द्वारा घुइसरनाथ धाम तक पहुचा जा सकता है |

हवाई यात्रा :
इलाहाबाद (बमरौली), वाराणसी और लखनऊ (अमौसी) अन्तर्राजीय हवाई अड्डे द्वारा घुइसरनाथ धाम पहुंचा जा सकता है |
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2 Aug 2011

महाशिवरात्रि पर पावन नगरी घुइसरनाथ धाम -2013

महाशिवरात्रि पर पावन नगरी बेल्हा (प्रतापगढ़) के पांचों धाम(बेलखरनाथ धाम , भयहरणनाथ धाम , बालेश्वरनाथ धाम , घुश्मेश्वरनाथ धाम और हौदेश्वरनाथ धाम) पर अनगिनत संख्या में शिवभक्त जलाभिषेक करते हैं । वैसे तो पूजन-अनुष्ठान का सिलसिला सुबह से शुरू होकर यह दिन भर चलता है , लेकिन सूर्योदय से पहले और प्रदोष काल के गोधूलि बेला में जलाभिषेक का खास महत्व होता है|
 फागुन की शिवरात्रि विशेषा | सब पूजहि जुही सविधि महेशा || 
अति दयालु भोले भण्डारी | शिव भोला दीनन हितकारी ||
                                                          हाशिवरात्रि २०१3 फोटो 


धाम में रात्रि से ही भगवान घुश्मेश्वर जी का दर्शन और उनका जलाभिषेक करने के लिए भक्त आने शुरू हो जातें हैं और सुबह तक मंदिर का फाटक खुलने का इन्तजार करते हैं फिर सर्वप्रथम घुश्मेश्वर भगवान प्रिय पुजारी श्री भाल गिरी जी घुइसरनाथ जी पर प्रथम पूजन-अर्चन और जलाभिषेक करते हैं |इसके बाद भगवान के दर्शन और जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक का सिलसिला शुरू होता है जो अगले दो दिन तक थमने का नाम नहीं लेता है| लाखों करोड़ो भक्त बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आनुशासित तरीके से “बोल-बम के जयकारे - ओम नमः शिवाय,बोल बम का नारा है, बाबा तेरा सहारा है,बोलो घुइसरनाथ के बाबा की जय,हर हर महादेव” का जयकारा करते हुए भगवान घुश्मेश्वर जी का दर्शन और जलाभिषेक करते हैं |भीड़ इतनी होती है की प्रशासन के पसीने छोट जातें हैं |


बाबा घुश्मेश्वर जी का जलाभिषेक के दौरान किसी तरह का व्यवधान न आए इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं। बाबा धाम पर श्रद्धालू श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पीएसी बल व पुलिस बल तैनात किया जाता है। सबसे बड़ी सुविधा तो वंहा के निवासियों द्वारा प्रदान की जाती है |जिन्होंने भक्तो की सेवा के लिए  समूह गठित किया है जो पुलिस प्रसाशन के साथ मिल कर अनुसाशित ढंग से भक्तों को हर तरह की परेशानी से बचाते हैं | सुविधा पूर्वक दर्शन एवं जलाभिषेक करने के लिए बैरीकेडिंग भी की जाती है।

1 Aug 2011

धाम में सुविधाएं श्रद्धालुओं को आनंद प्रदान करती हैं



●●●●●●●▬▬▬▬▬▬۩धर्मशाला۩▬▬▬▬▬●●●●●●●●●●
बाबा घुइसरनाथ धाम अवध क्षेत्र  का प्रमुख तीर्थ स्थल है अत: धाम वातावरण  हमेशा भक्तिमय  और श्रद्धालुओं  से भरा  रहता है | यातायात की विकसित सुविधा होने से भक्तगण आराम से दर्शन कर घर को प्रस्थान कर जाते हैं | परन्तु सुदूर क्षेत्र के श्रद्धालुओं के रुकने व आराम करने के लिए भारी तादात में बरामदे  व  कुछ धर्मशालाएं बनी हुई है ,जिनमे ठहरने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता | धर्मशाला के संचलान एवं देखरेख का कार्य मंदिर प्रसाशन देखते हैं | श्रद्धालुओं  के भोजन से लेकर  उनके  पूजन अर्चन तक की व्यवस्था  प्रसाशन ही प्रबंधित करते हैं | किसी भी प्रकार की सहायता के लिए घुइसरनाथ धाम के वासी हमेशा तत्पर रहते हैं |

किसी भी प्रकार की धर्मशाला सहायता के लिए आप मंदिर प्रसाशन से संपर्क कर सकते हैं |
         ●●●●●●●●▬▬▬▬▬▬۩ गंगा सरोवर ۩▬▬▬▬▬●●●●●●●●●●
बाबा घुइसरनाथ धाम में बाबा श्री घुश्मेश्वर के जलाभिषेक के लिए बाबा भोले की जटा में विराजित माँ गंगा के जल सेस्नानित करने के लिए गंगा सरोवर का निर्माण कराया गया है हर सोमवार को सुबह गंगा सरोवर को गंगा जल से भरा जाता है और भक्त इस जल से श्री घुश्मेश्वर जी का जलाभिषेक करते है यह सुविधा साल के १२ महीने भक्तो के लिए उपलब्ध रहती है |
       गंगा सागर का निर्माण सन् २००० में किया गया जिससे बाबा घुइसरनाथ धाम कि सुंदरता और भी बढ़ गयी |
     ●●●●●●●▬▬▬▬▬▬۩ शिवालय सरोवर ۩▬▬▬▬▬●●●●●●●●●●
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भगवान घुश्मेश्वर का पवित्र धाम, घुइसरनाथ धाम सई नदी के किनारे स्थित है | पूर्वजो के अनुसार सई नदी का जल निर्मल, स्वक्छ और मीठा था | लेकिन विज्ञानं के इस दौर में, मिलो के बहते पानी की वजह से नदियों का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है | सई नदी का पावन जल, रायबरेली में स्थित मिलो के प्रदूषित जल से गंदा हो रहा है |भगवान घुश्मेश्वर को जल चढाने से पहले भक्तो को सई नदी के दूषित जल में स्नान करना पड़ता था | पर्यटन विभाग ने इस समस्या का निराकरण बाबा घुइसरनाथ धाम में सरोवर को निर्मित करके किया | आज भक्तो हेतु जलाभिषेक से पूर्व नहाने के लिए सरोवर के स्वक्छ जल की सुविधा उपलब्ध है |  
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28 Apr 2011

बाबा घुश्मेश्वर जी की उत्पत्ति : बाबा घुइसरनाथ धाम

(शिव महापुराण के अनुसार)
श्री शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार बतायी गई है– नदी के समीप में भारद्वाज कुल में उत्पन्न एक सुधर्मा नामक ब्रह्मवेत्ता (ब्रह्म को जानने वाला) ब्राह्मण निवास करते थे। सदा शिव धर्म के पालन में तत्पर रहने वाली उनकी पत्नी का नाम सुदेहा था। वह कुशलतापूर्वक अपने घर के कार्यों को करती हुई पति की भी सब प्रकार से सेवा करती थी। ब्राह्मण श्रेष्ठ सुधर्मा भी देवताओं तथा अतिथियों के पूजक थे। वे वैदिक सनातन धर्म के नियम का अनुसरण करते हुए नित्य अग्निहोत्र करते थे। त्रिकाल सन्ध्या (सुबह, दोपहर और शाम) करने के कारण उनके शरीर की कान्ति सूर्य की भाँति उद्दीप्त हो रही थी। वेद शास्त्रों के मर्मज्ञ (ज्ञाता) होने के कारण वे शिष्यों को पढ़ाया भी करते थे। वे धनवान तथा दानी भी थे। वे सज्जनता तथा विविध सद्गुणों के अधिष्ठान अर्थात पात्र थे। स्वयं शिव भक्त होने के कारण सदा शिव जी आराधना में लगे रहते थे तथा उन्हें शिव भक्त परम प्रिय थे। शिव भक्त भी उन्हें बड़ा प्रेम देते थे।
इतना सब कुछ होने पर भी सुधर्मा को कोई सन्तान न थी। यद्यपि उस ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण का कोई कष्ट न था, किन्तु उनकी धर्मपत्नी सुदेहा बड़ी दु:खी रहती थी। उसके पड़ोसी तथा अन्य लोग भी उसे नि:सन्तान होने का ताना मारा करते थे, जिसके कारण अपने पति से बार-बार पुत्रप्राप्ति हेतु प्रार्थना करती थी। उसके पति उस मिथ्या संसार के सम्बन्ध में उसे ज्ञान का उपदेश दिया करते थे, फिर भी उसका मन नहीं मानता था। उस ब्राह्मणदेव ने भी पुत्रप्राप्ति के लिए कुछ उपाय किये, किन्तु असफल रहे। उसके बाद अत्यन्त दु:खी उस ब्राह्मणी ने अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ अपने पति का दूसरा विवाह करा दिया। सुधर्मा ने द्वितीय विवाह से पूर्व अपनी पत्नी को बहुत समझाया था कि तुम इस समय अपनी बहन से प्यार कर रहीं हो, इसलिए मेरा विवाह करा रही हो, किन्तु जब इसे पुत्र उत्पन्न होगा,तो तुम उससे ईर्ष्या करने लगोगी। सुदेहा ने संकल्प लिया था कि वह कभी भी अपनी बहन से ईर्ष्या नहीं करेगी।विवाह के बाद घुश्मा एक दासी की तरह अपनी बड़ी बहन की सेवा करती थी तथी सुदेहा भी उससे अतिशय प्यार करती थी। अपनी बहन की शिव भक्ति से प्रभावित होकर उसके आदेश के अनुसार घुश्मा भी शिव जी का एक सौ एक पार्थिव लिंग (मिट्टी शिवलिंग) बनाकर पूजा करती थी। पूजा करने के बाद उन शिवलिंगों को समीप के तालाब में विसर्जित कर देती थी–
कनिष्ठा चैव पत्नी स्वस्रनुज्ञामवाप्य च। पार्थिवान्सा चकाराशु नित्यमेकोत्तरं शतम्।।
विधानपूर्वकं घुश्मा सोपचारसमन्वितम्।वृत्वा तान्प्राक्षिपत्तत्र तडागे निकटस्थिते।।
एवं नित्यं सा चकार शिवपूजां सवकामदाम्।विसृज्य पुनरावाह्य तत्सपर्याविधानत:।।
कुर्वन्त्या नित्यमेवं हि तस्या: शंकरपूजनम्।लक्षसंख्याऽभवत्पूर्णा सर्वकाम फलप्रदा।।
कृपया शंकरस्यैव तस्या: पुत्रो व्यजायत।सुन्दर: सुभगश्चैव कल्याणगुणभाजन:।।
शंकर की कृपा से घुश्मा को एक सुन्दर भाग्यशाली तथा सद्गुण सम्पन्न पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र प्राप्ति से जब घुश्मा का कुछ मान बढ़ गया, तब सुदेहा को ईर्ष्या पैदा हो गई। समय के साथ जब पुत्र बड़ा हो गया, तो विवाह कर दिया गया और पुत्रवधू भी घर में आ गई। यह सब देखकर सुदेहा और अधिक जलने लगी। उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, जिसके कारण उसने अनिष्ट करने की ठान ली। एक दिन रात्रि में उसने सोते समय घुश्मा के पुत्र के शरीर को चाकू से टुकड़े-टुकड़े कर दिया और शव को समेटकर वहीं पास के सरोवर में डाल दिया, जहाँ घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव लिंग का विसर्जन करती थी। सुदेहा शव को तालाब में फेंककर आ गई और आराम से घर में सो गई।प्रतिदिन की भाँति घृश्मा अपने पूजा कृत्य में लग गई और ब्राह्मण सुधर्मा भी अपने नित्यकर्म में लग गये। सुदेहा भी जब सुबह उठी तो, उसके हृदय में जलने वाली ईर्ष्या की आग अब बुझ चुकी थी, इसलिए वह भी आनन्दपूर्वक घर के काम-काज में जुट गई। जब बहू की नींद खुली, तो उसने देखा कि उसका पति बिस्तर पर नहीं है। बिस्तर भी ख़ून में सना है तथा शरीर के कुछ टुकड़े पड़े दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य देखकर दु:खी बहू ने अपनी सास घुश्मा के पास जाकर निवेदन किया और पूछा कि आपके पुत्र कहाँ गये हैं? उसने रक्त से भीगी शैय्या की स्थिति भी बताई और विलाप करने लगी– ‘हाय मैं तो मारी गयी। किसने यह क्रूर व्यवहार किया है?’ इस प्रकार वह पुत्रवधू करुण विलाप करती हुई रोने लगी।
सुधर्मा की बड़ी पत्नी सुदेहा भी उसके साथ ‘हाय!’ ऐसा बोलती हुई शोक में डूब गई। यद्यपि वह ऊपर से दु:ख व्यक्त कर रही थी, किन्तु मन ही मन बहुत प्रसन्न थी। अपनी प्रिय वधू के कष्ट और क्रन्दन (रोना) को सुनकर भी घुश्मा विचलित नहीं हुई और वह अपने पार्थिव-पूजन व्रत में लगी रही। उसका मन बेटे को देखने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हुआ। इसी प्रकार ब्राह्मण सुधर्मा भी अपने नित्य पूजा-कर्म में लगे रहे। उन दोनों ने भगवान के पूजन में किसी अन्य विघ्न की चिन्ता नहीं की। दोपहर को जब पूजन समाप्त हुआ, तब घुश्मा ने अपने पुत्र की भयानक शैय्या को देखा। देखकर भी उसे किसी प्रकार का दु:ख नहीं हुआ।उसने विचार किया, जिसने मुझे यह पुत्र दिया है, वे ही उसकी रक्षा भी करेंगे। वे तो भक्तप्रिय हैं, कालों के भी काल हैं तथा सत्पुरुषों के मात्र आश्रय हैं। वे ही सर्वेश्वर प्रभु हमारे भी संरक्षक हैं। वे माला गूँथने वाले माली की तरह जिनको जोड़ते हैं, उन्हें अलग-अलग भी करते हैं। मैं अब चिन्ता करके क्या कर सकती हूँ। इस प्रकार सांसारिक तत्त्वों का विचार कर उसने शिव के भरोसे धैर्य धारण कर लिया, किन्तु शोक का अनुभव नहीं किया। प्रतिदिन की तरह वह 'नम: शिवाय' का उच्चारण करती हुई उन पार्थिव लिंगों को लेकर सरोवर के तट पर गई। जब उसने पार्थिव लिंगों को तालाब में डालकर वापस होने की चेष्टा की, तो उसका अपना पुत्र उस सरोवर के किनारे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा। अपने पुत्र को देखकर घुश्मा के मन में न तो प्रसन्नता हुई और न ही किसी प्रकार का कष्ट हुआ। इतने में ही परम सन्तुष्ट ज्योति: स्वरूप महेश्वर शिव उसके सामने प्रकट हो गये। 
भगवान शिव ने कहा कि ‘मै’ तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम वर माँगों। तुम्हारी सौत ने इस बच्चे को मार डाला था, अत: मैं भी उसे त्रिशूल से मार डालूँगा। घुश्मा ने श्रद्धा-निष्ठा के साथ महेश्वर को प्रणाम किया और कहा कि सुदेहा मेरी बड़ी बहन है, कृपया आप उसकी रक्षा करे। शिव ने कहा कि सुदेहा ने तुम्हारा बड़ा अनिष्ट किया है, फिर तुम उसका उपकार क्यों करना चाहती हो? वह दुष्टा तो सर्वदा मार डालने के योग्य है। 

13 Feb 2011

घुइसरनाथ धाम संगीत(विडियो)

    उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में,
लालगंज के उत्तर घुश्मेश सई तीर हैं|
द्वादश लिंगों में गणना होती शिव भोले की ,
सई नदी के पास एक वृक्ष भी करील है |
मेला हर मंगल को लगता है भारी यंहा ,
शिवरात्रि एवं सावन दीन होती बड़ी भीर है |
द्वादश लिंगों में पूजित बाबा के आशीर्वाद लेने,
पहुँचते बाबा दरबार में गरीब औ अमीर हैं |

  घुइसरनाथ धाम संगीत(विडियो)  

इतिहास : बाबा घुइसरनाथ धाम

                             ▬▬▬۩बाबा घुइसरनाथ धाम नाम कैसे पड़ा۩▬▬ 

 प्राचीन काल में सई नदी के किनारे इलापुर(अब कुम्भापुर) नामक गाँव में श्री घुइसर यादव जी थे |वह एक चरवाहे थे और रोज जंगल में जानवर चराने जाते थे, वो बहुत ही नास्तिक थे उनकी ईश्वर में आस्था नहीं थी| वह जंगल में टीले(भीटा) पर ही रोज बैठकर आस पास की गाय-भैंस चराया करते थे क्योंकि भीटा बहुत दूर में था अत: सुबह से शाम तक जानवरों को चराते चराते वो अपना समय काटने के लिये घर से मूंज ले जाया करते थे जिससे वो रस्सियाँ बनाते थे | उसे खूंदने के लिए उन्हें पत्थर ढूढना था अतःउन्होंने वह पत्थर चुना जिसमे वो एक बार अटक कर गिर गए थे क्यों की वह बहुत बड़े वृक्ष के नीचे छावं में भी था और सभी पत्थरों से ज्यादा चमकीला और चिकना था,अब प्रतिदिन घुइसर जी मूंज खूंदते और रस्सी बनाया करते थे| दिव्य पत्थर पर रोज अपनी लाठी से चोट करते और शाम को पत्थर के आस पास साफ़ कर देते और पत्थर को भी अपने अगोंछे से साफ़ कर देते थे क्योंकि अगले दिन उन्हें फिर वहीं बैठना होता था |लेकिन जैसे जैसे वह पत्थर चोट मार रहे थे , उसी तरह वो पत्थर बाहर उपर की तरफ निकल रहा था | आज भी उस दिव्या पत्थर रुपी १२वे ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर जी में चोट के निशान मौजूद हैं यह कार्य करते करते कई वर्ष बीत गए , एक दिन शाम के समय बहुत बारिश हुई और वह पत्थर को व आस पास की जगह साफ़ कर रहे थे तभी बहुत भयानक आवाज के साथ दिव्या रोशनी हुई और भगवान शंकर उसी पत्थर से प्रकट होकर बोले घुइसर यादव तुमने मेरा सिर इतने दिन दबा के और मेरी सेवा करके मुझे खुश् कर दिया बोलो क्या वरदान चाहते हो मैं तुम्हे मनचाहा वरदान दूंगा | यदुवंशी घुइसर जी नास्तिक थे भगवान को साक्षात् अपने सामने देख वो शिवभक्ति से ओत प्रोत गये उनकी नास्तिकता जाती रही |भगवान शिव जी ने उस शिवलिंग के बारे में उन्हें सारी कहानी बताई की कैसे घुश्मा की भक्ति से वह आये थे और आज फिर दोबारा तुम्हारी निष्काम सेवा से प्रसन्न होकर पुन: जनकल्याण के लिए अवतरित हुए हैं क्योंकि मुझे त्रेता युग में अपने भगवान के दर्शन के लिए यंहा फिर से उद्भव लेना ही था |भगवान राम जी ने वन जाते वक्त भगवान घुश्मेश्वर जी से मुलाकात की थी और यंहा विश्राम भी किया था |जंहा उन्होंने बैठ कर विश्राम किया था उनके पसीने की बूँद वंहा गिरी जिससे वंहा करीर का वृक्ष उत्पन्न हुआ जो आज भी विराजमान है |अत: इस तरह शिव जी ने यदुवंशी घुइसर जी को दर्शन दिया और उनकी नास्तिकता का नाश किया घुइसर जी ने तीन वर मांगे :-

१- मेरे वंशज ही आपकी प्रथम पूजा करें |
२- सात गुना अन्न-जल आपकी सेवा से मुझे और मेरे वंश को हमेशा मिले |
३- मेरे नाम से आपका यह पावन धाम प्रसिद्द हो |




आज भी उनके वंशज श्री शिव मूर्ती गिरी जी हैं और बाबा धाम की सेवा में निरंतर लगे हुए हैं |बिना उनके या उनके पुत्रों के प्रथम पूजन के बगैर कोई बाबा धाम में भगवान घुश्मेश्वर जी की पूजा नहीं कर सकता है और आज भी घुइसर यादव जी के वंशज खुश और सुखी हैं | घुइसर यादव जी के नाम से ही भगवान घुश्मेश्वर जी के धाम का नाम बाबा घुइसरनाथ धाम पड़ा |(यह उपरोक्त इतिहास, कुम्भापुर (घुइसरनाथ धाम) आस पास निवास करने वाले लोगों से प्राप्त की गयी है)

11 Feb 2011

इतिहास - बाबा बूढ़े नाथ जी : देऊम पूरब (सांगीपुर)

                                                          ● बूढ़ेनाथ धाम मंदिर
उपलिंग रहत मुख्य लिंग साथा | भक्त वृन्द गांवइ शिव गाथा ||
बूढ़ेश्वर हैं देऊम् पासा | पूजेहु सेवत सेवक दासा ||

 बाबा घुइसरनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग का दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है.बाबा घुइसरनाथ धाम के नजदीक ही देऊम में बूढ़ेनाथ धाम मंदिर में स्थित बूढ़ेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यहां के शिवलिंग की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की, बल्कि उनका उद्भव स्वयं हुआ है और १२वें ज्योतिर्लिंग भगवान घुश्मेश्वर जी के उपलिंग के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं |भगवान घुश्मेश्वर घुइसरनाथ धाम  और बाबा बूढ़ेश्वर नाथ देऊम स्थान के बीच की लगभग ३ किमी. है। घुइसरनाथ के बाद अब वहां भी पर्यटन स्थल के अधिकारियों व कर्मचारियों ने इतिहास खंगालने की कवायद शुरू कर दी है। लालगंज तहसील मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर देउम चौराहे के पास प्राचीन बाबा बूढ़ेश्वर नाथ का मंदिर है। | कई वर्ष पहले दोनों भगवानो में कुछ स्वाभिमान को लेकर लड़ाई हो गयी | घुश्मेश्वर भगवान इलापुर (अब कुम्भापुर) घुइसरनाथ धाम में प्रकट हुए थे और भगवान बूढ़ेश्वर जी देऊम धाम में स्वयं ही जन कल्याण के लिए प्रकट हुए थे | दोनों क़ी लड़ाई काफी दिनों तक चलती रही, एक दिन ऐसा आया जब घुइसरनाथ भगवान ने बूढ़े धाम के ऊपर वार किया और उनके शरीर का कुछ हिस्सा गायब हो गया और तब जाकर भगवान बूढ़ेश्वर माने की भगवान घुश्मेश्वर जी ही बड़े हैं |आज भी बूढ़े धाम के मंदिर के शिवलिंग का उपरी हिस्सा टुटा हुआ है | 
बाबा बूढ़ेश्वर नाथ जी बहुत ही चमत्कारी हैं |उनका चमत्कार हम आपको बताते हैं |भारतीयों की धर्म के प्रति आस्था को देखकर यूं तो कई जगह अंग्रेजों ने इसकी थाह लेनी चाही पर वे कामयाब नहीं हुए, ऐसे ही देउम के बूढ़ेश्वर नाथधाम की थाह भी अंग्रेज नहीं ले पाए। चौबीस फीट की खोदाई के बाद जब बिच्छू, बर्र और अन्य विषैले जंतु निकलने लगे तो अंग्रेज अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए,बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले अंग्रेजों ने यहां के लोगों की आस्था देखकर बाबा बूढ़े नाथ के शिवलिंग को यह देखना चाहा कि इसे किसी ने स्थापित किया है या वे स्वयं उद्भूत हुए हैं। अंग्रेजों के आदेश पर मजदूरों ने खोदाई शुरु की और कई दिन तक खोदने के बाद लगभग चौबीस फीट तक की गहराई तक पहुंच गए। जब वे लोग आगे बढ़ने लगे तो उसमें से विषैले बिच्छू, बर्र, हांड़ा आदि निकल कर मजदूरों पर टूट पड़े। इससे मजदूरअपनी जान बचाते हुए भाग निकले। इसके पहले भी हजारो भक्तों प्रभु को सच्चे दिल से प्रार्थना, अरज कर मनवांछित फल प्राप्त करते थे और आज भी सर्व भक्तो की मनोकामना प्रभु पूर्ण करते हैं । संवत 2001 में आसपास गिरि परिवार ने बूढ़ेश्वर शिवलिंग के पास एक मंदिर का निर्माण जनसहयोग से प्रारंभ कर दिया। आज वहां एक मुख्य भव्य मंदिर और चार छोटे मंदिर स्थित हैं। यहां मलमास के पूरे माह और महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर तक के श्रद्धालु आते हैं और गंगाजल, बिल्व पत्र आदि से पूजन अर्चन करते हैं।

3 Feb 2011

बाबा श्री घुश्मेश्वर:ई-दर्शन

 बाबा श्री घुश्मेश्वर:ई-दर्शन 
सूचना : ई-दर्शन सुविधा मात्र उच्च तीव्रता वाले दर्शको के लिए उपलब्ध है| ब्रॉडबैंड दर्शक बिना अवरोध के बाबा घुश्मेश्वर के दर्शन कर सकते है, डायल-उप दर्शक दर्शन में अवरोध का सामना कर सकते है |

13 Feb 2010

घुश्मेश्वर धाम : महत्व व पौराणिक प्रमाण :ज्योतिर्लिंग

ज्योतिर्लिंग मे घुश्मेश्वरनाथ धाम का स्थान :
शिव पुराण मे द्वादश ज्योतिर्लोंगो का उल्लेख किया गया है, जिनके दर्शन मात्र से भक्त का जीवन तर जाता है, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मातर के सारे पाप व दुष्क्रत्य समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं। ये द्वादश है जो भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं :

१. सोमनाथ (प्रभास पतन, सौराष्ट्रा, गुजरात)                                          २. मल्लिकार्जुन (श्रीसैलम, आंध्र प्रदेश)
३. महाकालेश्वर (उज्जैन, मध्य प्रदेश)                                                 ४, ओंकारेश्वर (ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश)
५. केदारनाथ (केदारनाथ, उत्तराखंड)                                                   ६. भीमशंकर (भीमशंकर, महाराष्ट्र)
७. काशी विश्वनाथ (वनारसी, उत्तर प्रदेश)                                             ८. त्रेयम्ब्केश्वर ( नासिक, महाराष्ट्र)
९. वैद्यनाथ (वैद्यनाथ, झारखंड)                                                         १०. नागेश्वरनाथ (जगेश्वरे, गुजरात)
११. रामेश्वरम (मदुरै)                                                                    १२.  घुश्मेश्वर नाथ (प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश)



हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।
मूल बिंदु
ॐ नमोः शिव सांई
पतित पावन परम पिता परमात्मा शिव,गीता ज्ञान दाता दिव्य चक्षु विधाता शिव
'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। -ब्रह्मवैवर्त पुराण
शंकर शिव शम्भु साधु संतन हितकारी ॥ लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल ।
रुण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी ॥ पार्वती पति सुजान प्रमथराज वृषभयान ।
सुर नर मुनि सेव्यमान त्रिविध ताप हारी ॥
कुछ ऐसे भी लोग है, जो एलोरा (महाराष्ट्र) कैलास-मन्दिर को घुश्मेश्वर का प्राचीन स्थान मानते हैं और बहुत सारे लोग घुइसरनाथ धाम(प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) के मंदिर को घुश्मेश्वर का पौराणिक मंदिर मानते हैं, कुछ इस मंदिर को द्वादश ज्योतिर्लिंग मे शामिल करते है और कुछ लोग एलोरा के मंदिर को | दरअसल महाराष्ट्र के मनमाड के वेरुल स्थित ग्राम में विराजित ज्योतिर्लिंग को भी द्वादशवे ज्योतिर्लिंग ही माना जाता रहा है , मगर घुइसरनाथ धाम स्थित मंदिर के शिलालेखों और प्राप्त पौराणिक स्थल और धार्मिक दस्तावेजों से इस स्थान की बराहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में मान्यता स्थापित होती है .यह बात पुरातत्व विभाग की टीम भी कुछ हद तक यंहा आकार देखकर मानकर गयी है परन्तु अभी यह गहन शोध और विवादित खोज का हिस्सा बन गया है |
प्रस्तुत प्रमाण :
१- वाशिष्ठी नदी के किनारे बिल्व पत्रों एवं मंदार के वन ...
शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में वाशिष्ठी नदी बहती थी , जिसके किनारे मंदारवन(आकड़ों का वन ) तथा बेल पत्र के वन थे जिनसे भगवान घुश्मेश्वर की प्रतिदिन पूजा की जाती थी .ग्राम कुम्भापुर (पहले इलापुर) स्थित ज्योतिर्लिंग क्षेत्र के पास सई नदी बहती है जो पूर्वकाल की वाशिष्ठी नदी ही है तथा इसके किनारे बिल्वपत्रों का वन आज भी विरल रूप में स्थित है . मंदार के पौधे आज भी झुण्ड रूप में वन क्षेत्र में विद्यमान हैं |
२- उपलिंग का होना ....
शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में एक उपलिंग जरूर होता है | बाबा घुश्मेश्वरनाथ धाम के नजदीक ही देऊम में बूढ़ेनाथ धाम मंदिर में स्थित बूढ़ेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यहां के शिवलिंग की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की, बल्कि उनका उद्भव स्वयं हुआ है और १२वें ज्योतिर्लिंग भगवान घुश्मेश्वर जी के उपलिंग के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं |
३- जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा और प्रार्थना इस प्रकार की है–
इलापुरे रम्याविशालकेऽस्मिन्।
समुल्लसन्तं च जगदवरेण्यम्।।
वन्दे महोदारतरस्वभावं।
घुश्मेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये।।
और इलापुर ही बाद में कुम्भापुर गाँव नाम से जाना गया |
विद्वान लिखते हैं :
शंकराचार्य इलापुर गाई | कुम्भापुरही इलापुर भाई ||
घुश्मेश्वर थापित सरि तीरा | शिवानादी वह निर्मल नीरा ||
आदि बहुत सारे प्रमाण हैं |
यद्यपि ज्योतिर्लिंग के स्थान के सम्बन्ध में क्षेत्र विशेष के आधार पर मतान्तर दिखाता है, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से इन शिवलिंगों का महत्त्व कम नहीं होता है। ये सभी सिद्ध स्थान हैं, जहाँ दर्शन-पूजन करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। हिन्दू धर्म में जनश्रुतियों की अपेक्षा शास्त्रों का विशेष महत्त्व है। श्री शिव महापुराण हमारा शास्त्र है और उसके अनुसार उत्तर प्रदेश के देवस्थल प्रतापगढ़ ज़िले में सई नदी के पास ऊँचे टीले स्थित श्री घुश्मेश्वरनाथ मन्दिर ही श्री घुश्मेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान है। मुख्य रूप से शिव के उपासकों को यंहा आकर भगवान श्री घुश्मेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर कृतार्थ होना चाहिए।

2 Feb 2010

1 Feb 2010

घुइसरनाथ धाम प्रसार समिति से जुड़ें

              
 
 बाबा घुइसरनाथ जी की सेवा के लिए खुला आमंत्रण -प्रसार समिति के माध्यम से आप बाबा घुइसरनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर्व पर मात्र एक दिन की सेवा कर वर्ष भर का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं |

***जय बाबा घुइसरनाथ धाम की *** हर हर महादेव ***
कृपया महा शिवरात्रि में बाबा की सेवा के लिए ये फॉर्म भरके भेजे |

कृपया फॉर्म भरते समय निम्न सावधानियां बरते |
1.दी गयी जानकारी को सत्य ही लिखे |
2.सावधानी पूर्वक ही फॉर्म को भरे |
3.पता सही भरे तथा संपर्क नम्बर भी |
4.पहचान चुने में अपना पेन कार्ड, वोटर कार्ड,आधार कार्ड ,राशन कार्ड,जॉब कार्ड,स्कूल/कॉलेज रजिस्ट्रेशन नम्बर सही डाले |

5.बाबा के सेवा में महा शिवरात्री पर रहने के लिए प्रतिबद्ध है और क्या सेवा में आपकी रूचि है |
6.अगर हां,इसके लिए आप महा शिवरात्री के दिन अपना योगदान दे और यह फॉर्म भरे |
7.जिससे आपके नाम की आई.डी.कार्ड बनेगा जो जिला प्रशासन से मान्यता प्राप्त होगा |
8.सभी जानकारी सही भरे |
9.अधिक जानकारी के लिए www.ghuisarnathdham.org देखें |

प्रसार समिति बाबा की सेवा के लिया प्रतिबद्ध है आपसे सुझाव और सहयोग की अपेक्षा है |

महा शिवरात्रि में बाबा की सेवा के लिए नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करे|
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13 Feb 2009

बाबा घुश्मेश्वर धाम का गूगल मैप

गूगल मैप में बाबा घुइसरनाथ धाम का अद्भुद अलौकिक  चित्र : जय बाबा घुइसरनाथ जी 
http://ghuisarnathdham.com/hin/index.php?option=com_content&view=article&id=65&Itemid=97